रविवार, 25 फ़रवरी 2007

मैकदे में आज

नशे मे बेपरवाह हम मैकदे में आज
तस्लीम की सूली मे सर न देंगे आज

क्या बोलूं क्या मस्ती है क्या मय है आज
क्या साक़ी क्या मेहरबानी क्या लुत्फ आज

ना हिजर ना बू है पलायन की आज
दिलदार से पाक मुलाकात जो है आज

है राग-ओ-रंग साक़ी के साथ आज
प्याले हैं शराबे हैं बस जश्न ही है आज

मस्ती मे कैसे होती सुब्ह से शाम आज
हिसाब ज़मानों से चुकता हो रहे हैं आज

आग के बल्वे में मश्गूल हम हैं आज
हंगामे के बीच सच्चो की मजलिस है आज

खुद को जलाकर पूछते हैं हरेक मय से
मेरे साकी के सिवा देखा कोई करिश्मासाज

शम्सउल तबरेज़ ने की न कोई ख़ुराफ़ात
अद्वैत की मय ढाल सब को बुलाया दे आवाज

1 टिप्पणी:

अनूप शुक्ल ने कहा…

क्या बोलूं क्या मस्ती है क्या मय है आज
क्या साक़ी क्या मेहरबानी क्या लुत्फ आज

बहुत खूब!