पनाह मेरी यार मेरे, शौक की फटकार मेरे,
मालिको मौला भी हो, और हो पहरेदार मेरे।
नूह तू ही रूह तू ही, कुरंग* तू ही तीर तू ही,
आस ओ उम्मीद तू है, ग्यान के दुआर मेरे।
नूर तू है सूर तू, दौलतेमन्सूर तू,
बाजे** कोहेतूर*** तू, मार दिए ख़राश मेरे।
कतरा तू दरिया तू, गुंचा-ओ-खार तू,
शहद तू ज़हर तू, दर्द दिए हज़ार मेरे।
सूरज का घरबार तू, शुक्र का आगार तू,
आस का परसार तू, पार ले चल यार मेरे।
रोज़ तू और रोज़ा तू, मॅंगते की खैरात तू,
गगरा तू पानी तू, लब भिगो इस बार मेरे।
दाना तू ओ जाल तू, शराब तू ओ जाम तू,
अनगढ़ तू तैयार तू, ऐब दे सुधार मेरे।
न होते बेखुदी में हम, दिल में दर्द होते कम,
राह अपनी चल पड़े तुम, सुने कौन आलाप मेरे।
*कुरंग - हिरन।
**सूफ़ी परम्परा में पहुँचे हुए फ़कीर को बाज या परिन्दे की उपमा देने का चलन है।
***कोहेतूर उस पर्वत का नाम है जिस पर मूसा को खुदाई नूर के दर्शन हुए थे।
बाजेकोहेतूर से रूमी का इशारा यहाँ शम्स से है..जो उनकी समझ में खुदाई नूर के दर्शन मनमर्जी से कर लेते हैं। खराश मार देने की बात यहाँ कुछ अटपटी लगती है पर शायद रूमी कहना चाहते हैं कि शम्स की तेज़ तर्रार हस्ती के आगे उनका रूहानी तन अनगढ़ और नाज़ुक है, इसी लिये उनके सम्पर्क में खराश लग गई।
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2 टिप्पणियां:
जज्बातों का मनोरम संगम पढ़कर आनंद आ गया…।
बधाई स्वीकारें…।
हार्दिक धन्यवाद....
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