गुरुवार, 1 मार्च 2007

रूमी की रूबाईयां

रूमी के दीवाने शम्स-ए-तबरेज़ी में कुल जमा ३५,००० शेरों समेत ३,२३० ग़ज़लें हैं। ४४ तर्जीबन्द (एक छ्न्द) भी जिनमे तक़रीबन १७०० शेर हैं। और २००० के लगभग रूबाईयां भी हैं। उमर खयाम की रूबाईयां काफ़ी प्रसिद्ध हैं, जिसके आधार पर हरिवंश राय बच्चन मधुशाला लिखकर अमर हो गये.. पेश हैं रूमी की चंद रूबाईयां..

एक
वो पल मेरी हस्ती जब बन गया दरया
चमक उठ्ठा हर ज़र्रा होके रौशन मेरा
बन के शमा जलता हूँ रहे इश्क पर मैं
बस लम्हा एक बन गया सफरे उम्र मेरा

दो
हूँ वक्त के पीछे और कोई साथ नही
और दूर तक कोई किनारा भी नही
घटा है रात है कश्ती मैं खे रहा
पर वो खुदा रहीम बिना फज्ल के नही

तीन
पहले तो हम पे फरमाये हजारो करम
बाद में दे दिए हजारो दर्द ओ ग़म
बिसाते इश्क पर घुमाया खूब हमको
कर दिया दूर जब खुद को खो चुके हम

चार
ए दोस्त तेरी दोस्ती में साथ आए हैं हम
तेरे कदमों के नीचे बन गए खाक हैं हम
मज़्हबे आशिकी में कैसे ये वाजिब है
देखे तेरा आलम व तुझे न देख पाएं हम

4 टिप्‍पणियां:

रवि रतलामी ने कहा…

अच्छी रूबाइयाँ. अनुवाद भी लयपूर्ण है.
ये अनुवाद आपका है?

अभय तिवारी ने कहा…

जी..

Rajeev Goswami ने कहा…

जो साहित्य अन्य अपठ भाषा में हो उसे अपनी भाषा में तर्जुमा कर सबके लिए पठनीय बनाना बड़े ही शबाव का काम है मित्र
आपकी कोशिश बुलंदियां छुए यही दुआ

बेनामी ने कहा…

बढ़िया है अभय....लगे रहिये ...शुभकामनाएं !

समीर शर्मा